शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

वृद्धि, growth, विकास एवं वृद्धि में अंतर जानिए? , वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक, वृद्धि की अवस्थाएं, विकास का अधिगम से संबंध।

 वृद्धि एवं अधिगम

आप जानेंगे :-

# वृद्धि और विकास में अंतर
# वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
# वृद्धि की अवस्थाएं
# अधिगम
# विकास का अधिगम से संबंध


वृद्धि ( growth) :-



वृद्धि का अर्थ होता है बालों को की शारीरिक संरचना का विकास जिसके अंतर्गत लंबाई भार मोटाई तथा अन्य अंगों का विकास आता है।वृद्धि की प्रक्रिया अंतरिक्ष एवं ब्याह दोनों रूपों में होती है यह एक निश्चित आयु तक होती है तथा भौतिक पहलू फिजिकल aspect में ही संभव है। वृद्धि पर आनुवंशिकता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते हैं।

* वृद्धि एवं विकास में अंतर :-

परिमाणात्मक के आधार पर :- 

वृद्धि शब्द का प्रयोग परिमाणात्मक परिवर्तनों जैसे बच्चों के बड़े होने के साथ उनके आधार आकार लंबाई ऊंचाई इत्यादि के लिए होता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग परिमाणात्मक परिवर्तनों के साथ साथ व्यवहारिक परिवर्तनों जैसे कार्यकुशलता, कार्य क्षमता व्यवहार में सुधार इत्यादि के लिए भी होता है।

क्षेत्र के आधार पर:- 

वृद्धि विकास की प्रक्रिया का एक चरण होता है, इसका क्षेत्र सीमित होता है। जबकि विकास अपने आप में एक विशेष अर्थ रखता है, वृद्धि इसका एक भाग होती है।

परिपक्वता के आधार पर:-

वृद्धि की क्रिया आजीवन नहीं चलती बालक के परिपक्व होने के साथ ही यह रुक जाती है जबकि विकास में एक सतत प्रक्रिया है बालक की परिपक्व होने के बाद भी यह चलती रहती है।

विकास के आधार पर:-

बालक की शारीरिक वृद्धि हो रही है, इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि उसमें विकास भी हो रहा है ।अतः यह भौतिकी विकास को दर्शाता है जबकि बालक में विकास के लिए भी वृद्धि आवश्यक नहीं है अतः यह एक गुणात्मक विकास को दर्शाता है।


वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक:-

वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक अनेक कारक उत्तरदाई होते हैं जो निम्नलिखित हैं।

पोषण:-

- यह वृद्धि तथा विकास का महत्वपूर्ण घटक होता है बालक को विकास के लिए उचित मात्रा में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज, लवण इत्यादि की आवश्यकता होती है।

- हमारे खानपान में उपयुक्त पोषक तत्वों की कमी होगी तो वृद्धि एवं विकास प्रभावित होगा।

वृद्धि:-

- यह विकास के अन्य कारकों में सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है।

बौद्धिक विकास जितना उच्चतर होगा हमारे अंदर की समझदारी, नैतिकता, भावात्मक तर्कसिलता इत्यादि का विकास उतना ही उत्तम होगा।

वंशानुगत ( heredity) :-

- वंशानुगत स्थिति शारीरिक एवं मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

- माता पिता के गुण एवं अवगुण का प्रभाव बच्चों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।

लिंग (sex) :-

- सामान्यता लड़के एवं लड़कियों में विकास के क्रम में विविधता देखी जाती है।

- किसी अवस्था में विकास की गति लड़कियों में तीव्र होती है तो किसी अवस्था में लड़कों में।


 वायु एवं प्रकाश:-

- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए स्वच्छ वायु की आवश्यकता होती है अगर वायु स्वच्छ ना मिले तो बालक बीमार हो सकता है एवं इनके अभाव में कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

- शारीरिक विकास के लिए सूर्य का प्रकाश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि सूर्य के प्रकाश में विटामिन डी की प्राप्ति होती है जो कि विकास के लिए अपरिहार्य है।

अंतः स्त्रावी ग्रंथियां (endocrine glands):-

- अंतः स्रावी ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन बालक एवं बालिका के शारीरिक विकास को प्रभावित करता है।

शारीरिक क्रिया:-

- जीवन को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम बहुत जरूरी है या मानव की आयु बढ़ाता है अतः व्यक्ति को सक्रिय बनाए रखता है यह व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाता है।


 वृद्धि की अवस्थाएं:-

मनोवैज्ञानिकों ने मानव वृद्धि को निम्नलिखित अवस्थाओं में विभाजित किया गया है जो निम्न प्रकार है।

शैशव काल:- 

इसमें जन्म से 2 वर्ष तक के बच्चों का शारीरिक या मानसिक विकास तेजी से होता है।
बालक इस अवस्था में पूर्ण रुप से माता-पिता पर आश्रित रहता है।
 इस अवस्था में संवेगात्मक विकास भी होता है तथा इस अवस्था में सीखने की क्षमता की गति तीव्र होती है।
 जब नवजात शिशु काल इन्फैंसी की ओर अग्रसर होता है तो उसके अंदर प्यार व स्नेह की आवश्यकता बढने लगती हैं।

बाल्यावस्था:-

बाल्यावस्था को दो भागों में विभाजित किया गया है।

पुर्व बाल्यकाल:-

सामान्यतः 206 वर्ष की अवस्था में बालक को का बाहरी जुड़ा होने लगता है बच्चों में नकल करने की प्रवृत्ति अनुकरण एवं दोहराने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

सामाजिकरण एवं जिज्ञासा दोनों में वृद्धि होती है मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह काल भाषा सीखने की सर्वोत्तम अवस्था है।

उत्तर बाल्यावस्था:-

6 से 12 वर्ष तक की अवस्था इस अवस्था में बच्चों के बौद्धिक तथा नैतिक सामाजिक तर्कशील कर इत्यादि का व्यापक विकास होता है।
पढ़ने की रुचि में वृद्धि के साथ-साथ स्मरण क्षमता का भी विकास होता है बच्चों में समूह भावना का विकास होता है अर्थात समूह में खेलना समूह में रहना समलैंगिक व्यक्ति कोई मित्र बनाना इत्यादि।
जीवन में अनुशासन तथा नियमों की महत्व समझ में आने लगती है।
खोजी दृष्टिकोण एवं घूमने की प्रवृत्ति का विकास होता है।

किशोरावस्था:-

12 से 18 वर्ष के बीच की अवस्था अत्यंत जटिल अवस्था किस तथा साथ ही व्यक्ति की शारीरिक संरचना में परिवर्तन देखने को मिलता है।

यह वह समय होता है जिसमें बालक के बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर उन्मुख होता है।

इस अवस्था में किशोरों की लंबाई एवं भार दोनों में वृद्धि होती है साथ ही मांसपेशियों में भी वृद्धि होती है।

12 से 14 वर्ष की आयु के बीच लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की लंबाई व मांसपेशियों में तेजी से वृद्धि होती है 14 से 18 वर्ष की आयु में लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की लंबाई बढ़ती है।

इस काल में प्रजनन अंग विकसित होने लगते हैं और उनकी काम की मूल प्रवृत्ति जागृत होती हैं।

इस अवस्था में किशोर दुविधा एवं स्वयं से संबंधित सरोकार का भाव रखते हैं मैं कौन हूं,  मैं क्या हूं,  मैं भी कुछ हूं जैसी प्रबल भावनाओं का विकास इस अवस्था में होने लगता है।

इस अवस्था में किशोर किशोरियों की बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है स्मरण शक्ति बढ़ जाती है और उन में स्थायित्व आने लगता है।

इस अवस्था में मित्र बनाने की प्रवृत्ति तीव्र होती है सामाजिक संबंधों में वृद्धि होती है इस अवस्था में नशा या अपराध की ओर उन्मुख होने की अधिक संभावना रहती है।

किशोरावस्था के शारीरिक बदलाव का प्रभाव जीवन के सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर पड़ता है अतः इस अवस्था में उन्हें शिक्षकों , मित्रों और अभिभावक के सही मार्गदर्शन की सलाह की आवश्यकता पड़ती है।

युवा प्रौढ़ावस्था:-

सामान्यत 18 से 40 वर्ष तक।

किशोरावस्था एवं युवा प्रौढ़ावस्था की कोई निश्चित उम्र नहीं होती यह अवस्था मानव विकास में निश्चित परिपक्वता ग्रहण करने से प्राप्त होती है।

परिपक्व प्रौढ़ावस्था:-

सामान्य 40 से 65 वर्ष की अवस्था में

शारीरिक विकास में गिरावट आने लगती है अर्थात बालों का सफेद होना मांस पेशियों में ढीलापन तथा चेहरे पर झुर्रियां इत्यादि।

वृद्ध प्रौढ़ावस्था:-

65 वर्ष से अधिक वर्ष की अवस्था।

शारीरिक क्षमता का कमजोर होना।

सामाजिक, आध्यात्मिक, धार्मिक तथा संस्कृति क्रिया कलाप के प्रति रुझान।

अधिगम ( learning):-



अधिगम का अर्थ होता है सीखना अधिगम एक प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है एवं जिसके द्वारा हम कुछ ज्ञान अर्जित करते हैं या जिसके द्वारा हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है जन्म के तुरंत बाद से ही बालक सीखना प्रारंभ कर देता है अधिगम व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है इसके द्वारा जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलती है अधिगम के बाद व्यक्ति स्वयं और दुनिया को समझने के योग्य हो पाता है यदि छात्र की विषय वस्तु के ज्ञान के आधार पर कुछ परिवर्तन करने एवं उत्पादन करने की सक्षम हो गया हो तो उसे सीखने की प्रक्रिया को अधिगम कहा जाता है सार्थक अधिगम एवं मानसिक धोतकों को प्रस्तुत करने व उनमें बदलाव लाने की उत्पादक प्रक्रिया है की जानकारी इकट्ठा करने की प्रक्रिया।

अधिगम के संदर्भ में विद्वान द्वारा कुछ परिभाषाएं निम्न प्रकार दी गई है।

गेट्स के अनुसर:- अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपांतरण लाना ही अधिगम है।


E.A. पिल के अनुसार:- अधिगम व्यक्ति में एक परिवर्तन है जो उसके बाद आवरण के परिवर्तन के अनुसरण में होता है।


क्रो एवं क्रो के अनुसार:- सीखना आदतों ज्ञान एवं अभीव्यक्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यो को करने एवं नवीन तरीके सम्मिलित है और इनकी शुरुआत व्यक्ति द्वारा किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में अपने समायोजन को लेकर होती है इसके माध्यम से व्यवहार में उत्तर परिवर्तन होता है यह व्यक्ति को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य पाने में समर्थ बनाती है।


विकास का अधिगम से संबंध:-

विकास को विभिन्न पहलुओं का आपस में घनिष्ठ संबंध है एवं सभी अधिगम को प्रभावित करते हैं शारीरिक विकास विशेषकर छोटे बच्चों में मानसिक एवं संज्ञानात्मक विकास में मददगार है सभी बच्चों की खेल की गतिविधियों में सहभागिता उनके शारीरिक व मानव सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है मानसिक और भाषाई विकास सामाजिक विकास एवं अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं बालों को का विकास एवं अधिगम एक निरंतर प्रक्रिया है जिसके साथ बालक को में उन सिद्धांतों का भी विकास होता है जो बच्चों प्राकृतिक और सामाजिक दुनिया के बारे में बनाते हैं इसमें दूसरों के साथ अपने रिश्ते के संबंध भी विभिन्न सिद्धांत भी शामिल है जिनके आधार पर उन्हें पता चलता है कि चीजें जैसीसी है वैसी क्यों है कारण और कारक के बीच का संबध क्यों है और कार्य व निर्णय लेने का आधार है? अर्थ निकालना अमूर्त सोच की क्षमता विकसित करना विवेचना व कार्य अधिगम की प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू है जस्टिस कौन भावनाएं और आदर्श संज्ञानात्मक विकास के अभिन्न हिस्से हैं और भाषा विकास मानसिक चित्र अवधारणा एवं तार्किकता से इनका गहरा संबंध है व्यक्तिगत स्तर एवं दूसरों से भी विभिन्न तरीकों से सीखते हैं अनुभव के माध्यम से स्वयं चीजें बनाने से प्रयोग करने से पढ़ने से,विमर्श करने से, पूछने से, सुनने से, उस पर सोचने व मनन करने से तथा गतिविधियां लेखन के जरिए अभिव्यक्त करने से अपने विकास के मार्ग में उन्हें इस प्रकार के अवसर मिलने चाहिए।



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