शनिवार, 28 नवंबर 2020

क्या है कृषि सहकारिता एवं डेयरी सहकारिता जानिए इनकी चुनौती के बारे में

 

कृषि सहकारिता :-

कृषि सहकारिता के अंतर्गत कृषि बागवानी तथा 1 उत्पादन ओं का प्रसंस्करण संचयन एवं विपणन किया जाता है इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण संस्थान निम्नलिखित है।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी):-

इसकी स्थापना 1963 में कृषि मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक निगम के तौर पर की गई थी। इस निगम का कार्य उत्पादन प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण, कृषि उत्पादों, का आयात एवं निर्यात खाद्य पदार्थों, पशु ,औद्योगिक, माल, और अन्य अधिसूचित वस्तुओं एवं सेवाओं के कार्यक्रमों की योजना बनाना और उन को बढ़ावा देना है।

भारतीय किसान सहकारी उर्वरक लिमिटेड (इफको):-

इसकी मदद से देश के किसान और वर्गों का उत्पादन एवं वितरण के लिए स्वयं सहकारी संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं इसको की स्थापना का उद्देश्य उर्वरकों की पहुंच किसान तक आसान बनाने के लिए 1967 में की गई थी इसको बहू यही संयंत्रों वाली सहकारी समिति है जो देश और दुनिया के कई हिस्सों में रणनीतिक निवेश के तहत उर्वरक उत्पादन से संबंधित कार्य कर रही है इसका एकमात्र उद्देश्य भारतीय किसानों की बेहतरी एवं उनके लिए लाभ कमाना है इसको के उर्वरक का वितरण 39824 सहकारी समितियों के माध्यम से पूरे देश में किया जाता है।


भारतीय राष्ट्रीय कृति शंकरी विपनन संघ मर्यादित (नेफेड):-

इसकी स्थापना 1958 में की गई। नेफेड की स्थापना कृषि उत्पादों में सहकारी विपणन को बढ़ाने के लिए की गई थी। ताकि किसान को लाभ मिल सके नेफेड पूरे देश में फैले हुए सहकारी नेटवर्क के माध्यम से मंडी स्तर पर विपणन समिति को सक्रिय रूप से शामिल करके किसानों की उपज की खरीद करके उनकी सहायता करता है जैसे  दलहन, और तिलहन ओ मसाले, कपास, जनजाति उत्पाद जुट, जुट की वस्तुएं, अंडे, ताजे फल, सब्जियां की खरीद।

मुख्य बाजारों में किसानों की उपयोगी परेशान आधार पर बिक्री की व्यवस्था करा कर नेफेड फिर उन्हें विपणन सहयोग देता है।ताकि उन्हें उनकी उपज का अधिकतम मूल्य मिल सके नेफेड नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज के माध्यम से वायदा कारोबार भी कर रहा है। वायदा कारोबार आरंभ करने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि वास्तविक रूप से वस्तुओं की डिलीवरी प्राप्त करके मूल्य जोखिम और बाजार जोखिम को कम किया जा सके। तथा विभिन्न उपजा के भंडारित वास्तविक माल के अनुसार कृषि उपज के मूल्य को स्थिर रखने में मदद किया जा सके ताकि किसानों को उनकी उपज का बेहतर और मूल्य लाभकारी मिले।


डेयरी सहकारिता:-

नेशनल डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी):-

1965 में जमीनी स्तर पर लाखो दुग्ध उत्पादों को एक बेहतर भविष्य देने के मिशन के साथ स्थापित किया गया था। इस प्रतिबद्धता के फल स्वरुप भारत विश्व के अग्रणी सर्वोच्च दो उत्पादक देश के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित कर सकता है। बोर्ड की गतिविधियों में डेयरी सहकारिता को मजबूती प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी विशेषज्ञता उपलब्ध कराने के साथ रोजगार सृजन, दुग्ध उपलब्धता, विदेशी मुद्रा, बचत और किसानों की आय में वृद्धि शामिल है 15 राज्य में प्रसारित 170 दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ द्वारा दुग्ध प्रसंस्कृत एवं विपनित किया जाता है।



विगत वर्षों में सरकारी संस्थाओं द्वारा सृजित ग्राम गुणवत्ता और मूल्य के पर्याय बन गए हैं अमूल (गुजरात) ,विजय (आंध्र प्रदेश), वेरका (पंजाब), सरस (राजस्थान), नंदिनी (कर्नाटक), मिल्मा (केरल ), और गोकुल (कोल्हापुर) उन ब्रांडो में है , जिन्हें उपभोक्ताओं का विश्वास मिला है।

चुनौतियां:-

यह व्यापक रूप से समझा जा सकता है कि सहकारी समिति गरीबों के विकास के लिए एक विशिष्ट उपकरण है परंतु वास्तव में सहकारी समितियां गरीब किसानों के विकास के लिए सबसे उपयुक्त संस्थान नहीं है ऐसा इसलिए है क्योंकि यह लोग सर सहकारी समितियों की व्यवस्था करने और वित्त  की व्यवस्था करने के लिए सबसे कम सक्षमव्यक्ति है ,आमतौर पर मध्यम और कुछ बड़े किसानी बाजार में मौजूद कुछ कमियों को दूर करने के लिए सहकारी विकास की पहल करते हैं, हालांकि एक बार जब सहकारी समितियों का प्रारंभिक चरण में चुका हो तब किसान और छोटे अंशधारक इसमें शामिल हो सकते हैं, और मान्यता प्राप्त कर लाभ उठा सकते हैं।

डेयरी, हथकरघा, शहरी बैंकिंग, और आवास जैसे गतिविधियां के कुछ क्षेत्रों में सहकारिता ने बड़ी सफलता हासिल की है,लेकिन कई ऐसे बड़े क्षेत्र है जहां सहकारिता बहुत ज्यादा उत्पादक नहीं है देश में सहकारी समितियों की असफलता मुख्य रूप से निष्क्रिय सदस्यता और सहकारी समिति के प्रबंधन में सदस्यों की सक्रिय भागीदारी की कमी के कारण है सरकारी ऋण संस्थानों में बढ़ती देय राशि आंतरिक संस्थानों के प्रयोग की कमी सरकारी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता पेशेवर प्रबंधन की कमी नौकरशाही नियंत्रण और राजनीतिक हस्तक्षेप के साथ प्रबंधन का हस्तक्षेप सहकारी समितियों के विकास में हानिकारक है।

ग्रामीण विकास के एक प्रमुख उपकरण के तौर पर स्वतंत्र और असल सहकारी समिति की क्षमता से कई सरकारों दाताओं एवं गैर सरकारी संगठनों से इनकी मान्यता तेजी से बढ़ी है सहकारी समितियों के विकास के अलावा सहायक कानूनी एवं आर्थिक माहौल की सुविधा पैदा करने एवं हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।




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