गुरुवार, 26 नवंबर 2020

सहकारिता विभाग की आवश्यकता क्यों? जानिए क्या थे उद्देश्य सहकारिता विभाग के? सहकारिता विभाग में महिलाओं का योगदान? भारत में महिलाओं की स्थिति।

 सहकारिता विभाग की आवश्यकता:-

भारत में जनसंख्या का 70% गांव में निवास करता है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक सुविधा या और संरचनात्मक विकास की कमी के कारण प्रत्येक व्यक्ति तक वित्तीय सुविधा की पहुंच एक चुनौती बनकर उभरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों को वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया से नहीं जोड़ा जा सका है। ऐसी स्थिति में सरकारी संस्थाएं एवं स्वयं सहायता समूह बिना किसी अवसंरचना के छोटे लोगों को छोटी-छोटी बचत एकत्र करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं, ताकि उस एकत्रित राशि को किसी बड़े उद्देश्य की प्राप्ति में लगाया जा सके। इंसानो से ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर महिलाओं का भी योगदान बढ़ा है। इससे गांव में सामाजिक आर्थिक न्याय के आदर्श को प्राप्त करने में सहायता मिली है।

उद्देश्य:-

1. निर्धनों का जीवन स्तर उच्च बनाना
2. उनको छोटी बच्चों से लाभ कमाने हेतु प्रेरित करना।
3. महिलाओं को वित्त प्रबंधन व सामूहिक निर्णय में भागीदार बनाना।
4. महिलाओं को सक्रिय भागीदार से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना।
5. स्वरोजगार को बढ़ाकर समावेशी व सतत विकास करना।
6.  ग्रामीण निर्धनों की ऋण जरूरतों की पूर्ति के लिए पूरक नीतियां बनाना है।
7. बैंकिंग गतिविधियों को बढ़ावा देना और बचत तथा ऋण के लिए सहयोग करना।
8. समूह के सदस्यों के मध्य आपसी विश्वास बढ़ाना बी एस के लक्ष्य में शामिल है।

सहकारी संस्था के निर्धारक तत्व:-

1) एक जैसे सामाजिक आर्थिक स्तर के व्यक्तियों का समूह होने से उनकी रूचि योग में मतभेद कम होगा।

2) इन समूहों में जाति, धर्म, लिंग आदि आधार पर विभेद नहीं किया जाता है।

3) इन समूह का आकार 15 से 20 व्यक्तियों का होता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता पूर्वक अपनी बात रख सकता है।

4) इन समूहों में व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए नियमित उपस्थिति होनी चाहिए, जिससे समूहों की गतिविधियों में पारदर्शिता बनी रहेगी।

5) यह बचत को गतिशील बनाकर पूंजी निर्माण में सहायक है।

महिलाओं का योगदान:-

भारत में सहकारिता अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका। इसका मुख्य कारण है भारतीय सहकारिता आंदोलन में महिलाओं के सक्रिय सहयोग का अभाव। इस क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बिल्कुल ही असंतोषप्रद है। भारत में जितने भी प्रकार के सहकारी समितियां बनी है, उनमें महिलाओं की सहकारी समितियां लगभग 2% ही है, जबकि महिलाओं की आबादी 50% है। इससे सिद्ध होता है कि सरकारी आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी लगभग नगण्य या बिल्कुल ही कम है। आज देश के कुल श्रम शक्ति का एक तिहाई श्रम शक्ति महिला को माना जाता है, लेकिन तब भी उसकी आर्थिक और सामाजिक हालत पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर की है। यद्यपि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महिलाएं कुटीर उद्योग, कृषि कार्य, डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन, कुकुट पालन, मधुमक्खी पालन ,बागवानी , दैनिक श्रमिक, उत्पाद प्रोसेसिंग कार्य, सूअर पालन आदि कार्यों में लगी है। परंतु उनकी संख्या और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिसका प्रमुख कारण निम्नलिखित है।

* महिलाओं में शिक्षा और साक्षरता का अभाव।

* संपत्ति का अधिग्रहण में महिलाओं के उत्तराधिकारी पुरुषों की तुलना में कम।

* महिलाओं से संबंधित समाज में स्थित सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति।

* समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता का अभाव।

* महिलाओं की पोषण एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रति उदासीनता।

* समाज में नीति निर्धारक कार्य में महिलाओं की भूमिका का अभाव।

* जागरूकता की कमी।

* महिलाओं में सहकारिता आंदोलन में भाग लेने से होने वाले ।

* लाभ की जानकारी या सहकारिता ज्ञान का अभाव।

* नेतृत्व का अभाव।

बेरोजगारी एवं गरीबी दूर करने हेतु तथा समाज को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु सहकारिता के समान कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। देश एवं समाज तथा महिलाओं की आर्थिक सामाजिक स्थिति के उत्थान हेतु सहकारिता आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। किसी भी देश का विकास एवं पुरुषों के सहयोग से ही होना संभव नहीं है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी सहयोग आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है, अन्यथा विकास अधूरा ही होगा।

       आज दुनिया के जितने भी विकसित देश है जैसे कि जापान, जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड एंड मार्क आदि। वहां के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैसे सहकारी आंदोलन में महिलाओं की सक्रियता से सिर्फ देश एवं समाज का ही नहीं बल्कि वहां की महिलाएं भी आत्मनिर्भर होती जा रही है।

                                      इस प्रकार सहकारिता एक आंदोलन है अस्तित्व का, सहकर्म का, सहयोग का, सहाभाग का, सामूहिक जिम्मेदारी का , सामूहिक बहुमुखी विकास का, तथा गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन का सब एक के लिए एक सबके लिए,समष्टि व्यष्टि के लिए एवं व्यष्टि समष्टि के लिए मौलिक आधार है। इससे एक होकर साथ साथ चलने एवं जीवन जीने की भावना का विकास होता है।


                    

      

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