बुधवार, 25 नवंबर 2020

सहकारिता विभाग Cooperative

 सहकारिता विभाग :-

अनेक व्यक्तियों या संस्था द्वारा किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिलकर प्रयास करना सहकारिता (कॉरपोरेशन) कहलाता है। समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं कि सम्मिलित संस्था को सहकारी संस्था कहते हैं, आमतौर पर सरकारी संस्थान की स्थापना प्रतिकूल बाजार की स्थितियों की प्रतिक्रियाओं के अनुसार की जाती है, जिस में भाग लेने वाले सभी सदस्य भाग होते हैं, ताकि संयुक्त आकार और पूरे समूह की क्षमता के कारण लाभ उठाया जा सके।
                                                         भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों की देन है। अकाल, किसानों की ऋण व्यस्तता और गरीबी के इस दुष्चक्र से बाहर निकलने का सबसे अच्छा साधन के रूप में सहकारी समितिया सामने आई है। किसानों को सहकारी आंदोलन के चलते अपने अल्प संसाधनों के संयोजन से क्रेडिट से संबंधित आम समस्याओं और कृषि उपज के विपणन एवं आदान की आपूर्ति को हल करने का एक आकर्षक तरीका मिल गया।
       भारत में वैसे तो सहकारिता का इतिहास काफी प्राचीन ,है लेकिन विधिवत रूप से 1904 में सहकारी समिति अधिनियम लाया गया। सर्वप्रथम इसमें ही ग्रामीण रिंग समितियों की परिकल्पना की गई थी। 1919 में सहकारिता का विषय प्रांतों में स्थानांतरित कर दिया गया था। अधिकांश प्रांतों ने सहकारी समितियों के कार्य का विनियमन करने के लिए अपने अपने कानून अधिनियमित किए वर्तमान में सहकारी समितियां भारत के संविधान की राज्य सूची का विषय है।

                                                       स्वतंत्रता के पश्चात सहकारिता को गरीबी हटाने एवं तेजी से सामाजिक आर्थिक विकास करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय माना गया। योजना प्रक्रिया के आगमन के साथ, सहकारिता पंचवर्षीय योजनाओं का एक अभिन्न हिस्सा बन गई। परिणाम स्वरूप हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सहकारिता एक महत्वपूर्ण खंड के रूप में उभर कर सामने आई।     
                      1954 में अखिल भारतीय ग्रामीण दिन सर्वेक्षण समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सहकारी समितियों के कार्य क्षेत्र के विस्तार, ग्रामीण बचत को प्रोत्साहन और व्यवसाय विविधीकरण की जरूरत पर बल दिया गया। रिपोर्ट में सहकारी समिति की शेयर पूंजी में सरकार को भागीदारी की भी सिफारिश की गई। इस सिफारिश को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राज्यों के द्वारा सहकारी आंदोलन के लिए विभिन्न योजनाओं का प्रारंभ किया गया। ताकि बड़े आकार की समितियों का गठन किया जा सके।       
                   मध्य प्रदेश में सहकारी संस्थाओं की गतिविधियों का मुख्य आधार सहकारिता विभाग है। विभाग में लगभग 35608 संस्थाओं के माध्यम से प्रदेश में अल्पकालीन और दीर्घकालीन ऋण, खाद बीज और कृषि के आदानो की व्यवस्था, शहरी साख व्यवस्था को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं का वितरण शहरी उपभोक्ता सहकारिता, आवास सहकारिता एवं मत्स्य , डेरी, वनोपज, बुनकर व खनिज कर्म वैधानिक कार्य की गतिविधियों का संचालन करता है।
                        सहकारिता क्षेत्र में ग्रामीणों को अल्पकालिक साख सुविधा ने सुनिश्चित करने के लिए मध्य प्रदेश राज्य सहकारी बैंक सहित 38 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक एवं 4530 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां कार्य करती है इसी प्रकार दीर्घकालिक साख व्यवस्था के अंतर्गत मध्यप्रदेश राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा 38 जिला सहकारी कृषि एवं ग्राम विकास बैंकों के माध्यम से दीर्घकालीन ऋण वितरित किया जाता है।

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