सोमवार, 30 नवंबर 2020

Football information for competitive exam फुटबॉल, फीफा द्वारा आयोजित विश्वकप, प्रमुख फुटबॉल खिलाड़ी, भारत के प्रमुख खिलाड़ी, प्रमुख शब्दावली।

आप जानेंगे....



 
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# भारत के प्रमुख खिलाड़ी
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फुटबॉल का जन्म इंग्लैंड में हुआ था विश्व का पहला फुटबॉल क्लब 1857 में शेफील्ड फुटबॉल क्लब इंग्लैंड में गठित हुआ था उल्लेखनीय है कि भारत का पहला फुटबॉल क्लब मोहन बागान 1889 था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल की शुरुआत फीफा ( the federation of international football association) की स्थापना के पश्चात होती है। फीफा की स्थापना जूल्स रीमें नामक फ्रांसीसी व्यक्ति ने उन्नीस सौ 4 ईसवी में की थी जिसका मुख्यालय पेरिस में है।

1908 मे फुटबाल को लंदन ओलंपिक में शामिल किया गया था किंतु इसके बावजूद कुछ सर्वश्रेष्ठ से खिलाड़ी इससे वंचित रह गए थे अतः फीफा ने 1928 में विश्व कप फुटबॉल प्रतियोगिता आयोजित करने का निर्णय लिया प्रथम विश्व कप फुटबॉल का आयोजन 1930 में उरुग्वे की राजधानी मोंटीवीडियो में हुआ जिसके प्रति 4 वर्ष बाद इसका आयोजन होने लगा।

फीफा द्वारा आयोजित विश्वकप:-

* 1930 में उरुग्वे की राजधानी मॉन्टिन वीडियो में पहला विश्वकप आयोजित किया गया जिसमें विजेता उरूग्वे रहा।

* 1934 में इटली में दूसरा विश्वकप आयोजित किया गया जिसमें विजेता इटली रहा।

* 1938 में तीसरा विश्वकप आयोजित किया गया जिसमें विजेता इटली रहा।

1950 में चौथा विश्वकप ब्राजील में आयोजित किया गया जिसमें विजेता उरूग्वे रहा।

सन 1954 में पांचवा विश्वकप स्विजरलैंड में आयोजित किया गया जिसमें विजेता पश्चिमी जर्मनी रहा।

1958 में छठवां विश्वकप स्वीडन में आयोजित किया गया जिसमें ब्राजील विजेता रहा।

1962 में सातवां विश्वकप चिली में आयोजित किया गया जिसमें ब्राजील विजेता रहा

1966 मे आठवा विश्व कप इंग्लैंड में आयोजित किया गया जिसमें इंग्लैंड विजेता रहा।

1970 में विश्व कप मेक्सिको में आयोजित किया गया जिसमें ब्राजील विजेता रहा ।

1974 में दसवां विश्व कप पश्चिमी जर्मनी में आयोजित किया गया जिसमें पश्चिमी जर्मनी विजेता रहा।

1978 में 11 विश्व कप अर्जेंटीना में आयोजित किया गया जिसमें अर्जेंटीना ही विजेता रहा ।

1982 में विश्व कप स्पेन में आयोजित किया गया जिसमें इटली विजेता रहा।

1986 में 12 विश्वकप मेक्सिको में आयोजित किया गया जिसमें अर्जेंटीना विजेता रहा।

 1990 में तेरवा विश्व कप इटली में आयोजित किया गया जिसमें पश्चिमी जर्मनी विजेता रहा।

1994 में विश्व कप अमेरिका में आयोजित किया गया जिसमें ब्राजील विजेता रहा।

1998 में फ्रांस में विश्वकप आयोजित किया गया जिसमें फ्रांस विजेता रहा।

2002 में दक्षिण कोरिया एवं जापान में विश्वकप का आयोजन किया गया जिसमें ब्राजील विजेता रहा।

2006 में जर्मनी में विश्व कप का आयोजन किया गया जिसमें इटली विजेता रहा।

2010 में दक्षिण अफ्रीका में विश्व कप का आयोजन किया गया जिसमें स्पेन विजेता रहा।

2014 में ब्राजील में विश्वकप का आयोजन किया गया जिसमें जर्मनी विजेता रहा।

2018 में रूस के जबिवाका में विश्व कप का आयोजन किया गया जिसमें फ्रांस विजेता रहा।

2022 में कतर मैं विश्वकप प्रस्तावित है।

प्रमुख तथ्य

ब्राजील 5 बार विजेता रहा तथा इटली चार बार विजेता रहा जर्मनी ने 4 बार विश्वकप जीते हैं।

2018 रूस में आयोजित विश्वकप का आयोजन 15 जुलाई 2018 को हुआ।

FIFA का वर्तमान headquarters जुरिक स्विजरलैंड में है।

शेफील्ड (इंग्लैंड) कटलरी, छुरे कांटे के लिए प्रसिद्ध है।

फुटबॉल विश्व में सबसे लोकप्रिय खेल है।

प्रमुख फुटबॉल खिलाड़ी:-

एड्सन अरेंट्स डी नसिमेंटो ( पेले, ब्लैक पर्ल) - ब्राज़ील

लियोनेल मेसी ( ला पुलगा)।           -    अर्जेंटीना

क्रिस्टीयानो रोनाल्डो ( CR-7 ) -पुर्तगाल

मिरस्लो क्लोज - जर्मनी (विश्व में सर्वाधिक गोल)

डिएगो माराडोना -  अर्जेंटीना ( हैंड ऑफ गॉड) 

नेमार   -    Brazil

भारत के प्रमुख खिलाड़ी:-

शैलेन मन्ना (1948 , 1952 ओलंपिक) , पीटर थंगराज 1956, 1960 (एशियन गोलकीपर ऑफ द ईयर), आईएम विजयन, वॉल्यूम बूटियां, सुनील छेत्री, दीपक मंडल।

प्रमुख शब्दावली:-

Medfield, stryker, pass, back pass, goalkeeper, corner, forward, penalty kick (11 metre), free kick, drivel, extra time, faul, referee, linesman, offside, caesars Kick, banana kick, sweeper, back, throw in, sudden death , golden gol, tackle, slider tackle, cross, kick off, flag, first half, second half, etc



 हरिकेन जो कि इंग्लैंड के कैप्टन है इन्होंने गोल्डन बूट जीते हैं।


Luka modric ने गोल्डन बाल जिती।


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रविवार, 29 नवंबर 2020

विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से संबंध concept of development and its relationship with learning

विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से संबंध ( concept of development and its relationship with learning):-



विकास की अवधारणा:-

जीवन पर्यंत चलने वाली एक निरंतर प्रक्रिया है विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक (फिजिकल), क्रियात्मक (मोटर ), संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव), भाषागत (लैंग्वेज), संवेगात्मक (इमोशनल),  एवं सामाजिक (सोशल) विकास होता है।
बालक की आयु के साथ होने वाले गुणात्मक और परिवर्तन परिवर्तन सामान्यतः देखे जाते हैं बालक में क्रमबद्ध रूप से होने वाले सुसंगत परिवर्तन की क्रमिक श्रंखला को विकास कहते हैं।

क्रम बद्ध एवं सुसंगत होना इस बात को संकेत करता है कि बालक के अंदर अब तक के संगठित गुणात्मक परिवर्तन तथा उसमें आगे होने वाले परिवर्तन में एक निश्चित संबंध है। आगे होने वाले परिवर्तन अब तक के परिवर्तनों की परिपक्वता पर निर्भर करते हैं।

अरस्तु के अनुसार:-

विकास आंतरिक एवं बाह्य कारणों से व्यक्ति में परिवर्तन है।

विकास के अभिलक्षण:-

विधायक जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जो गर्भधारण से लेकर मृत्यु पर्यंत होती रहती है महान वैज्ञानिक ने विकास के विभिन्न लक्षणों को बताया है जो इस प्रकार है----

# विकासात्मक परिवर्तन पराय व्यवस्थित प्रगतिशील और नियमित होते हैं सामान्य से विशिष्ट और सरल से जटिल और एकीकृत से क्रियात्मक स्तरों की ओर अग्रसर होने के दौरान यह एक क्रम के अनुसरण करते हैं।

# विकास बहुआयामी होता है अर्थात कुछ क्षेत्रों में यह बहुत तीव्र वृद्धि को दर्शाता है जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में धीमी गति से होता है।

#विकास बहुत ही लचीला होता है इसका तात्पर्य है कि एक ही व्यक्ति अपनी पिछली विकास दर की तुलना में किसी विशिष्ट क्षेत्र में अपेक्षाकृत आकस्मिक रूप से अच्छा सुधार प्रदर्शित कर सकता है एक अच्छा परिवेश शारीरिक शक्ति अथवा स्मृति और बुद्धि के स्तर में अपेक्षित सुधार ला सकता है।

# विकासात्मक परिवर्तनों में प्राया परिपक्वता और क्रियात्मक ता के स्तर पर उच्च स्तरीय वृद्धि देखने में आती है उदाहरण स्वरुप शब्दावली के आकार और जटिलता में वृद्धि परंतु इस प्रक्रिया में कोई कमी अथवा क्षति भी निहित हो सकती है जैसे हड्डियों के घनत्व में कमी या वृद्धावस्था में याददाश्त का कमजोर होना।

# विकासात्मक परिवर्तन मात्रात्मक हो सकते हैं जैसे आयु बढ़ने के साथ कद बढ़ना अथवा गुणात्मक जैसे नैतिक मूल्यों का निर्माण।

# किशोरावस्था के दौरान शरीर के साथ-साथ संवेगात्मक सामाजिक और संज्ञानात्मक क्रियात्मक का भी तेजी से परिवर्तन दिखाई देते हैं।

# विकास प्रासंगिक हो सकता है यह ऐतिहासिक परिवेश और सामाजिक सांस्कृतिक घटकों को प्रभावित हो सकता है।

# विकासात्मक परिवर्तनों की दर अथवा गति में उल्लेखनीय व्यक्तिगत अंतर हो सकते हैं यह अंतर आनुवांशिक घटको अथवा परिवेश सिया प्रभाव के कारण हो सकते हैं कुछ बच्चे अपनी आयु की तुलना में अत्यधिक पूर्व चेतन जागरूक हो सकते हैं जबकि कुछ बच्चों में विकास की गति बहुत धीमी होती है उदाहरण स्वरूप यद्यपि एक और शब्द बच्चा तीन शब्दों के वाक्य 3 वर्ष की आयु में बोलना शुरू कर देता है परंतु कुछ ऐसे बच्चे भी हो सकते हैं जो 2 वर्ष के होने से बहुत पहले ही ऐसी योग्यता प्राप्त कर लेते हैं।

* विकास के आयाम:-मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन की सुविधा की दृष्टि कौन से विकास को निम्नलिखित भागों में बांटा है।

# शारीरिक विकास:-

शरीर के बाहर परिवर्तन जैसे ऊंचाई शारीरिक अनुपात में वृद्धि इत्यादि जिन्हें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है किंतु शरीर के आंतरिक अवयव के परिवर्तन बाहर स्वरूप में दिखाई तो नहीं पड़ते किंतु शरीर के भीतर इनक समुचित विकास होते रहता है

- प्रारंभ में शिशु अपने हर प्रकार के कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया के फल स्वरुप वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो जाता है।

- शारीरिक विकास पर बालक के अनुवांशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है इसके अतिरिक्त बालक के परिवेश और उसकी देखभाल का भी उसके शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है यदि बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार उपलब्ध नहीं हो रहा है तो उससे विकास के सामान्य गति की आशा कैसे की जा सकती है?

- बालक की वृद्धि एवं विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसलिए भी रखना अनिवार्य है क्योंकि बच्चों की रुचि या इच्छाएं दृष्टिकोण एवं एक तरह से उनका पूर्ण व्यवहार शारीरिक वृद्धि और विकास पर निर्भर करता है।

- बच्चों की शारीरिक वृद्धि और विकास के सामान्य ढांचे से परिचित होकर अध्यापक यह जान सकता है कि एक विशेष आज तक पर बच्चों से क्या आशा की जा सकती हैं?

मानसिक विकास:-

शरीर के ब्रा परिवर्तन जैसे शारीरिक अनुपात में वृद्धि, ऊंचाई इत्यादि स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है किंतु शरीर के आंतरिक अवयव योग के परिवर्तन बाहर रूप से दिखाई तो नहीं पड़ते किंतु शरीर के भीतर इनका समुचित विकास होता रहता है।

प्रारंभ में शिशु अपने हर प्रकार के कार्यों के लिए दूसरे पर निर्भर रहता है धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया के फल स्वरुप वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति में सक्षम हो जाता है।

शारीरिक विकास पर बालक के अनुवांशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है इसके अतिरिक्त बालक के परिवेश एवं उसकी देखभाल का भी उसके शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है यदि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषक आहार उपलब्ध नहीं हो रहा है, तो उसके विकास के सामान्य व्यक्ति की आवश्यक कैसे की जा सकती हैं?

बालक की वृद्धि एवं विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसके लिए भी रखना अनिवार्य है, क्योंकि बच्चों की रुचियां, इच्छाएं, दृष्टिकोण, एवं एक तरह से उसका पूर्ण व्यवहार शरीर की वृद्धि एवं विकास पर ही निर्भर करता है।

बच्चों की शारीरिक वृद्धि एवं विकास के सामान्य राज्य से परिचित होकर अध्यापक यह जान सकता है कि एक विशेष आज तक पर बच्चे से क्या आशा की जा सकती है?


मानसिक विकास:-

संज्ञानात्मक या मानसिक विकास (कॉग्निटिव और मेंटल डेवलपमेंट) से तात्पर्य बालक की उनसे भी मानसिक योग्यता और क्षमता में वृद्धि और विकास से है जिसके परिणाम स्वरुप विभिन्न प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का पर्याप्त उपयोग कर पाता है।

कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना, निरीक्षण करना, समस्या समाधान करना, निर्णय लेना इत्यादि की योग्यता संज्ञानात्मक विकास के फल स्वरुप ही विकसित होते हैं।

जन्म के समय बालक में इस प्रकार की योग्यता का अभाव होता है धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ-साथ उनमें मानसिक विकास की गति भी बढ़ती है।

संज्ञानात्मक विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसलिए होनी चाहिए क्योंकि इसके अभाव में वह बालों को कि इससे संबंधित समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगा।

यदि कोई बालक मानसिक रूप से कमजोर है, तो इसका कारण क्या है? यह जानना उसके उपचार के लिए आवश्यक है।

विभिन्न अवस्थाओं और आयु स्तर पर मानसिक वृद्धि और विकास को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त पाठ्यपुस्तक के तैयार करने में भी सहायता मिल सकती है।

सांविधिक विकास:-

संवेग जिसे भाव भी कहा जाता है का अर्थ है ऐसी अवस्था जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, खुशी इत्यादि। सवेंग के उदाहरण है बालक की आयु बढ़ने के साथ ही इन सब लोगों का विकास भी होता रहता है।

संवेगात्मक विकास (इमोशनल डेवलपमेंट) मानव वृद्धि एवं विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है बालक का समय का आत्मा व्यवहार उसकी शारीरिक वृद्धि एवं विकास को ही नहीं बल्कि बौद्धिक सामाजिक एवं नैतिक विकास को भी प्रभावित करता है।

बालक के संतुलित विकास में उसके सहयोगात्मक विकास की अहम भूमिका होती है।

बालक के संवेगात्मक विकास पर पारिवारिक वातावरण का भी बहुत प्रभाव पड़ता है।

विद्यालय के परिवेश और क्रियाकलापों को उचित प्रकार से संगठित कर अध्यापक बच्चों के संवेगात्मक विकास में भरपूर योगदान दे सकते हैं।

क्रियात्मक विकास:-

फ्री आत्मक विकास का अर्थ होता है व्यक्ति की कार्य करने की शक्तियां, क्षमता व योग्यताओं का विकास।

क्रियात्मक शक्तियों, क्षमताओं या योग्यताओं का अर्थ होता है कि ऐसी शारीरिक गतिविधियां या क्रियाएं जिन को संपन्न करने के लिए मांस पेशी एवं तंत्रिकाओं की गतिविधियों का संयोजन की आवश्यकता होती है जैसे कि चलना , बैठना इत्यादि

एक नवजात शिशु ऐसे कार्य करने में अक्षम होता है शारीरिक वृद्धि एवं विकास के साथ ही उम्र बढ़ने के साथ उस में इस तरह की योग्यताओं का भी विकास होने लगता है।

इसके कारण बालक को आत्मविश्वास अर्जित करने में भी सहायता मिलती है पर्याप्त क्रियात्मक विकास के अभाव में बालक में विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास में बाधा पहुंचती हैं।

क्रियात्मक विकास के स्वरूप एवं उसकी प्रक्रिया का ज्ञान होना शिक्षकों के लिए आवश्यक है।

इसी ज्ञान के आधार पर ही वह बालक में विभिन्न कौशलों का विकास करवाने में सहायक हो सकता है।

जिन बालको में क्रियात्मक विकास सामान्य से कम होता है उनके समायोजन एवं विकास हेतु विशेष कार्य करने की आवश्यकता होती है।

भाषाई विकास:-

भाषा के विकास को एक प्रकार का संज्ञानात्मक विकास भी माना जाता है।

भाषा के माध्यम से बालक अपने मन के भावों विचारों को एक दूसरे के सामने रखता है और दूसरे के भाव विचारों एवं भावनाओं को समझता है।

भाषा विज्ञान के अंतर्गत बोलकर विचार को प्रकट करना संकेत के माध्यम से अपनी बात रखना तथा लिखकर अपनी बातों को रखना इत्यादि को सम्मिलित किया जाता है।

बालक 6 माह से 1 वर्ष के बीच को शब्दों को समझने एवं बोलने लगता है।

3 वर्ष की अवस्था में वह कुछ छोटे वाक्य को बोलने लगता है 15 से 16 वर्ष के बीच काफी शब्दों की समझ विकसित हो जाती हैं।

भाषाई विकास का क्रम एक क्रमिक विकास होता है उस के माध्यम से कौशल में वृद्धि होती है।

सामाजिक विकास:-

सामाजिक विकास का शाब्दिक अर्थ होता है समाज के अंतर्गत रहकर विभिन्न पहलुओं को सीखना समाज के अंतर्गत ही चरित्र निर्माण अच्छा व्यवहार तथा जीवन से संबंधित व्यवहारिक शिक्षा आदि का विकास होता है।

बालों को की विकास की प्रथम पाठशाला परिवार को माना गया है तत्पश्चात समाज को सामाजिक विकास के माध्यम से बालों को का जुड़ाव व्यापक हो जाता है।

संबंधों के दायरे में वृद्धि अर्थात माता-पिता एवं भाई-बहन के अतिरिक्त दोस्तों से मिलना ।

सामाजिक विकास के माध्यम से बालकों की सांस्कृतिक धार्मिक तथा सामुदायिक विकास इत्यादि की भावना उत्पन्न होती हैं।

बालक के मन में आत्म सम्मान, स्वाभिमान तथा विचारधारा का जन्म होता है।

बालक समाज के माध्यम से अपने आदर्श व्यक्तियों का चयन करता है तथा कुछ बनने की प्रेरणा उनसे लेता है।

एक शिक्षित समाज में ही व्यक्ति का उत्तम विकास संभव हो सकता है।






शनिवार, 28 नवंबर 2020

क्या है कृषि सहकारिता एवं डेयरी सहकारिता जानिए इनकी चुनौती के बारे में

 

कृषि सहकारिता :-

कृषि सहकारिता के अंतर्गत कृषि बागवानी तथा 1 उत्पादन ओं का प्रसंस्करण संचयन एवं विपणन किया जाता है इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण संस्थान निम्नलिखित है।

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी):-

इसकी स्थापना 1963 में कृषि मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक निगम के तौर पर की गई थी। इस निगम का कार्य उत्पादन प्रसंस्करण, विपणन, भंडारण, कृषि उत्पादों, का आयात एवं निर्यात खाद्य पदार्थों, पशु ,औद्योगिक, माल, और अन्य अधिसूचित वस्तुओं एवं सेवाओं के कार्यक्रमों की योजना बनाना और उन को बढ़ावा देना है।

भारतीय किसान सहकारी उर्वरक लिमिटेड (इफको):-

इसकी मदद से देश के किसान और वर्गों का उत्पादन एवं वितरण के लिए स्वयं सहकारी संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं इसको की स्थापना का उद्देश्य उर्वरकों की पहुंच किसान तक आसान बनाने के लिए 1967 में की गई थी इसको बहू यही संयंत्रों वाली सहकारी समिति है जो देश और दुनिया के कई हिस्सों में रणनीतिक निवेश के तहत उर्वरक उत्पादन से संबंधित कार्य कर रही है इसका एकमात्र उद्देश्य भारतीय किसानों की बेहतरी एवं उनके लिए लाभ कमाना है इसको के उर्वरक का वितरण 39824 सहकारी समितियों के माध्यम से पूरे देश में किया जाता है।


भारतीय राष्ट्रीय कृति शंकरी विपनन संघ मर्यादित (नेफेड):-

इसकी स्थापना 1958 में की गई। नेफेड की स्थापना कृषि उत्पादों में सहकारी विपणन को बढ़ाने के लिए की गई थी। ताकि किसान को लाभ मिल सके नेफेड पूरे देश में फैले हुए सहकारी नेटवर्क के माध्यम से मंडी स्तर पर विपणन समिति को सक्रिय रूप से शामिल करके किसानों की उपज की खरीद करके उनकी सहायता करता है जैसे  दलहन, और तिलहन ओ मसाले, कपास, जनजाति उत्पाद जुट, जुट की वस्तुएं, अंडे, ताजे फल, सब्जियां की खरीद।

मुख्य बाजारों में किसानों की उपयोगी परेशान आधार पर बिक्री की व्यवस्था करा कर नेफेड फिर उन्हें विपणन सहयोग देता है।ताकि उन्हें उनकी उपज का अधिकतम मूल्य मिल सके नेफेड नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज के माध्यम से वायदा कारोबार भी कर रहा है। वायदा कारोबार आरंभ करने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि वास्तविक रूप से वस्तुओं की डिलीवरी प्राप्त करके मूल्य जोखिम और बाजार जोखिम को कम किया जा सके। तथा विभिन्न उपजा के भंडारित वास्तविक माल के अनुसार कृषि उपज के मूल्य को स्थिर रखने में मदद किया जा सके ताकि किसानों को उनकी उपज का बेहतर और मूल्य लाभकारी मिले।


डेयरी सहकारिता:-

नेशनल डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी):-

1965 में जमीनी स्तर पर लाखो दुग्ध उत्पादों को एक बेहतर भविष्य देने के मिशन के साथ स्थापित किया गया था। इस प्रतिबद्धता के फल स्वरुप भारत विश्व के अग्रणी सर्वोच्च दो उत्पादक देश के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित कर सकता है। बोर्ड की गतिविधियों में डेयरी सहकारिता को मजबूती प्रदान करने के लिए वित्तीय सहायता और तकनीकी विशेषज्ञता उपलब्ध कराने के साथ रोजगार सृजन, दुग्ध उपलब्धता, विदेशी मुद्रा, बचत और किसानों की आय में वृद्धि शामिल है 15 राज्य में प्रसारित 170 दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ द्वारा दुग्ध प्रसंस्कृत एवं विपनित किया जाता है।



विगत वर्षों में सरकारी संस्थाओं द्वारा सृजित ग्राम गुणवत्ता और मूल्य के पर्याय बन गए हैं अमूल (गुजरात) ,विजय (आंध्र प्रदेश), वेरका (पंजाब), सरस (राजस्थान), नंदिनी (कर्नाटक), मिल्मा (केरल ), और गोकुल (कोल्हापुर) उन ब्रांडो में है , जिन्हें उपभोक्ताओं का विश्वास मिला है।

चुनौतियां:-

यह व्यापक रूप से समझा जा सकता है कि सहकारी समिति गरीबों के विकास के लिए एक विशिष्ट उपकरण है परंतु वास्तव में सहकारी समितियां गरीब किसानों के विकास के लिए सबसे उपयुक्त संस्थान नहीं है ऐसा इसलिए है क्योंकि यह लोग सर सहकारी समितियों की व्यवस्था करने और वित्त  की व्यवस्था करने के लिए सबसे कम सक्षमव्यक्ति है ,आमतौर पर मध्यम और कुछ बड़े किसानी बाजार में मौजूद कुछ कमियों को दूर करने के लिए सहकारी विकास की पहल करते हैं, हालांकि एक बार जब सहकारी समितियों का प्रारंभिक चरण में चुका हो तब किसान और छोटे अंशधारक इसमें शामिल हो सकते हैं, और मान्यता प्राप्त कर लाभ उठा सकते हैं।

डेयरी, हथकरघा, शहरी बैंकिंग, और आवास जैसे गतिविधियां के कुछ क्षेत्रों में सहकारिता ने बड़ी सफलता हासिल की है,लेकिन कई ऐसे बड़े क्षेत्र है जहां सहकारिता बहुत ज्यादा उत्पादक नहीं है देश में सहकारी समितियों की असफलता मुख्य रूप से निष्क्रिय सदस्यता और सहकारी समिति के प्रबंधन में सदस्यों की सक्रिय भागीदारी की कमी के कारण है सरकारी ऋण संस्थानों में बढ़ती देय राशि आंतरिक संस्थानों के प्रयोग की कमी सरकारी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता पेशेवर प्रबंधन की कमी नौकरशाही नियंत्रण और राजनीतिक हस्तक्षेप के साथ प्रबंधन का हस्तक्षेप सहकारी समितियों के विकास में हानिकारक है।

ग्रामीण विकास के एक प्रमुख उपकरण के तौर पर स्वतंत्र और असल सहकारी समिति की क्षमता से कई सरकारों दाताओं एवं गैर सरकारी संगठनों से इनकी मान्यता तेजी से बढ़ी है सहकारी समितियों के विकास के अलावा सहायक कानूनी एवं आर्थिक माहौल की सुविधा पैदा करने एवं हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।




गुरुवार, 26 नवंबर 2020

सहकारिता विभाग की आवश्यकता क्यों? जानिए क्या थे उद्देश्य सहकारिता विभाग के? सहकारिता विभाग में महिलाओं का योगदान? भारत में महिलाओं की स्थिति।

 सहकारिता विभाग की आवश्यकता:-

भारत में जनसंख्या का 70% गांव में निवास करता है। इन ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक सुविधा या और संरचनात्मक विकास की कमी के कारण प्रत्येक व्यक्ति तक वित्तीय सुविधा की पहुंच एक चुनौती बनकर उभरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों को वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया से नहीं जोड़ा जा सका है। ऐसी स्थिति में सरकारी संस्थाएं एवं स्वयं सहायता समूह बिना किसी अवसंरचना के छोटे लोगों को छोटी-छोटी बचत एकत्र करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं, ताकि उस एकत्रित राशि को किसी बड़े उद्देश्य की प्राप्ति में लगाया जा सके। इंसानो से ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर महिलाओं का भी योगदान बढ़ा है। इससे गांव में सामाजिक आर्थिक न्याय के आदर्श को प्राप्त करने में सहायता मिली है।

उद्देश्य:-

1. निर्धनों का जीवन स्तर उच्च बनाना
2. उनको छोटी बच्चों से लाभ कमाने हेतु प्रेरित करना।
3. महिलाओं को वित्त प्रबंधन व सामूहिक निर्णय में भागीदार बनाना।
4. महिलाओं को सक्रिय भागीदार से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना।
5. स्वरोजगार को बढ़ाकर समावेशी व सतत विकास करना।
6.  ग्रामीण निर्धनों की ऋण जरूरतों की पूर्ति के लिए पूरक नीतियां बनाना है।
7. बैंकिंग गतिविधियों को बढ़ावा देना और बचत तथा ऋण के लिए सहयोग करना।
8. समूह के सदस्यों के मध्य आपसी विश्वास बढ़ाना बी एस के लक्ष्य में शामिल है।

सहकारी संस्था के निर्धारक तत्व:-

1) एक जैसे सामाजिक आर्थिक स्तर के व्यक्तियों का समूह होने से उनकी रूचि योग में मतभेद कम होगा।

2) इन समूहों में जाति, धर्म, लिंग आदि आधार पर विभेद नहीं किया जाता है।

3) इन समूह का आकार 15 से 20 व्यक्तियों का होता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता पूर्वक अपनी बात रख सकता है।

4) इन समूहों में व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए नियमित उपस्थिति होनी चाहिए, जिससे समूहों की गतिविधियों में पारदर्शिता बनी रहेगी।

5) यह बचत को गतिशील बनाकर पूंजी निर्माण में सहायक है।

महिलाओं का योगदान:-

भारत में सहकारिता अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका। इसका मुख्य कारण है भारतीय सहकारिता आंदोलन में महिलाओं के सक्रिय सहयोग का अभाव। इस क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बिल्कुल ही असंतोषप्रद है। भारत में जितने भी प्रकार के सहकारी समितियां बनी है, उनमें महिलाओं की सहकारी समितियां लगभग 2% ही है, जबकि महिलाओं की आबादी 50% है। इससे सिद्ध होता है कि सरकारी आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी लगभग नगण्य या बिल्कुल ही कम है। आज देश के कुल श्रम शक्ति का एक तिहाई श्रम शक्ति महिला को माना जाता है, लेकिन तब भी उसकी आर्थिक और सामाजिक हालत पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर की है। यद्यपि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महिलाएं कुटीर उद्योग, कृषि कार्य, डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन, कुकुट पालन, मधुमक्खी पालन ,बागवानी , दैनिक श्रमिक, उत्पाद प्रोसेसिंग कार्य, सूअर पालन आदि कार्यों में लगी है। परंतु उनकी संख्या और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिसका प्रमुख कारण निम्नलिखित है।

* महिलाओं में शिक्षा और साक्षरता का अभाव।

* संपत्ति का अधिग्रहण में महिलाओं के उत्तराधिकारी पुरुषों की तुलना में कम।

* महिलाओं से संबंधित समाज में स्थित सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति।

* समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता का अभाव।

* महिलाओं की पोषण एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रति उदासीनता।

* समाज में नीति निर्धारक कार्य में महिलाओं की भूमिका का अभाव।

* जागरूकता की कमी।

* महिलाओं में सहकारिता आंदोलन में भाग लेने से होने वाले ।

* लाभ की जानकारी या सहकारिता ज्ञान का अभाव।

* नेतृत्व का अभाव।

बेरोजगारी एवं गरीबी दूर करने हेतु तथा समाज को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु सहकारिता के समान कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। देश एवं समाज तथा महिलाओं की आर्थिक सामाजिक स्थिति के उत्थान हेतु सहकारिता आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। किसी भी देश का विकास एवं पुरुषों के सहयोग से ही होना संभव नहीं है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी सहयोग आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है, अन्यथा विकास अधूरा ही होगा।

       आज दुनिया के जितने भी विकसित देश है जैसे कि जापान, जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड एंड मार्क आदि। वहां के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैसे सहकारी आंदोलन में महिलाओं की सक्रियता से सिर्फ देश एवं समाज का ही नहीं बल्कि वहां की महिलाएं भी आत्मनिर्भर होती जा रही है।

                                      इस प्रकार सहकारिता एक आंदोलन है अस्तित्व का, सहकर्म का, सहयोग का, सहाभाग का, सामूहिक जिम्मेदारी का , सामूहिक बहुमुखी विकास का, तथा गरीबी एवं बेरोजगारी उन्मूलन का सब एक के लिए एक सबके लिए,समष्टि व्यष्टि के लिए एवं व्यष्टि समष्टि के लिए मौलिक आधार है। इससे एक होकर साथ साथ चलने एवं जीवन जीने की भावना का विकास होता है।


                    

      

बुधवार, 25 नवंबर 2020

सहकारिता विभाग Cooperative

 सहकारिता विभाग :-

अनेक व्यक्तियों या संस्था द्वारा किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिलकर प्रयास करना सहकारिता (कॉरपोरेशन) कहलाता है। समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं कि सम्मिलित संस्था को सहकारी संस्था कहते हैं, आमतौर पर सरकारी संस्थान की स्थापना प्रतिकूल बाजार की स्थितियों की प्रतिक्रियाओं के अनुसार की जाती है, जिस में भाग लेने वाले सभी सदस्य भाग होते हैं, ताकि संयुक्त आकार और पूरे समूह की क्षमता के कारण लाभ उठाया जा सके।
                                                         भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों की देन है। अकाल, किसानों की ऋण व्यस्तता और गरीबी के इस दुष्चक्र से बाहर निकलने का सबसे अच्छा साधन के रूप में सहकारी समितिया सामने आई है। किसानों को सहकारी आंदोलन के चलते अपने अल्प संसाधनों के संयोजन से क्रेडिट से संबंधित आम समस्याओं और कृषि उपज के विपणन एवं आदान की आपूर्ति को हल करने का एक आकर्षक तरीका मिल गया।
       भारत में वैसे तो सहकारिता का इतिहास काफी प्राचीन ,है लेकिन विधिवत रूप से 1904 में सहकारी समिति अधिनियम लाया गया। सर्वप्रथम इसमें ही ग्रामीण रिंग समितियों की परिकल्पना की गई थी। 1919 में सहकारिता का विषय प्रांतों में स्थानांतरित कर दिया गया था। अधिकांश प्रांतों ने सहकारी समितियों के कार्य का विनियमन करने के लिए अपने अपने कानून अधिनियमित किए वर्तमान में सहकारी समितियां भारत के संविधान की राज्य सूची का विषय है।

                                                       स्वतंत्रता के पश्चात सहकारिता को गरीबी हटाने एवं तेजी से सामाजिक आर्थिक विकास करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय माना गया। योजना प्रक्रिया के आगमन के साथ, सहकारिता पंचवर्षीय योजनाओं का एक अभिन्न हिस्सा बन गई। परिणाम स्वरूप हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सहकारिता एक महत्वपूर्ण खंड के रूप में उभर कर सामने आई।     
                      1954 में अखिल भारतीय ग्रामीण दिन सर्वेक्षण समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सहकारी समितियों के कार्य क्षेत्र के विस्तार, ग्रामीण बचत को प्रोत्साहन और व्यवसाय विविधीकरण की जरूरत पर बल दिया गया। रिपोर्ट में सहकारी समिति की शेयर पूंजी में सरकार को भागीदारी की भी सिफारिश की गई। इस सिफारिश को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राज्यों के द्वारा सहकारी आंदोलन के लिए विभिन्न योजनाओं का प्रारंभ किया गया। ताकि बड़े आकार की समितियों का गठन किया जा सके।       
                   मध्य प्रदेश में सहकारी संस्थाओं की गतिविधियों का मुख्य आधार सहकारिता विभाग है। विभाग में लगभग 35608 संस्थाओं के माध्यम से प्रदेश में अल्पकालीन और दीर्घकालीन ऋण, खाद बीज और कृषि के आदानो की व्यवस्था, शहरी साख व्यवस्था को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं का वितरण शहरी उपभोक्ता सहकारिता, आवास सहकारिता एवं मत्स्य , डेरी, वनोपज, बुनकर व खनिज कर्म वैधानिक कार्य की गतिविधियों का संचालन करता है।
                        सहकारिता क्षेत्र में ग्रामीणों को अल्पकालिक साख सुविधा ने सुनिश्चित करने के लिए मध्य प्रदेश राज्य सहकारी बैंक सहित 38 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक एवं 4530 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां कार्य करती है इसी प्रकार दीर्घकालिक साख व्यवस्था के अंतर्गत मध्यप्रदेश राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक द्वारा 38 जिला सहकारी कृषि एवं ग्राम विकास बैंकों के माध्यम से दीर्घकालीन ऋण वितरित किया जाता है।

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

भारत के विश्व विरासत स्थल ( यूनेस्को सूची में शामिल होने का वर्ष तथा राज्य )


 1983 :- 

आगरा का किला ( उत्तर प्रदेश ), अजंता की गुफाएं ( महाराष्ट्र) , एलोरा की गुफाएं (महाराष्ट्र), ताज महल (उत्तर प्रदेश)

1984 :-

महाबलीपुरम के स्मारक ( तमिलनाडु ), सूर्य मंदिर (उड़ीसा)

 1985 :-

मानस वन्य जीव अभ्यारण (असम), काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम),  केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान)

1986 :-

गोवा का चर्च, फतेहपुर सिकरी ( उत्तर प्रदेश ), हंपी अवशेष (कर्नाटक) खजुराहो मंदिर (मध्य प्रदेश)

1987 :-

चोल मंदिर (तमिलनाडु), एलीफेंट गुफाएं (महाराष्ट्र), पट्टाकल के स्मारक (कर्नाटक), सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान (पश्चिम बंगाल)

1988:-

नंदा देवी राष्ट्रीय अभ्यारण व फूलों की घाटी 1988 (उत्तराखंड)

1989 :-

सांची का स्तूप (मध्य प्रदेश)

1993 :-

हुमायूं का मकबरा (दिल्ली) कुतुबमीनार (दिल्ली)

1999 :-

पश्चिम बंगाल माउंटेन रेलवे ,दार्जिलिंग रेलवे ,2005 नीलगिरी (तमिलनाडु )/कालका शिमला (हिमाचल प्रदेश) 2008

2002:-



महाबोधी मंदिर बोधगया (बिहार)

2003 :-

भीमबेटका की गुफाएं मध्य प्रदेश

2004 :-

चंपानेर पावागढ़ पार्क (गुजरात), छत्रपति शिवाजी टर्मिनल (महाराष्ट्र )/पूर्व विक्टोरिया टर्मिनल

2007:-

लाल किला (दिल्ली)

2010:-

जंतर मंतर जयपुर (राजस्थान)

2012:-

पश्चिमी घाट (कर्नाटक केरल महाराष्ट्र और तमिलनाडु)

2013:-

राजस्थान के पहाड़ी किले, चित्तौड़गढ़ का किला, कुंभलगढ़ किला , रणथंबोर किला , जैसलमेर किला (सवाई माधोपुर) ,  आमेर किला ,गागरोन किला ( झालावार )

2014:-

रानी की वाव ( पाटन ,गुजरात ),ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय पार्क (हिमाचल प्रदेश)

2016 :-

नालंदा ( बिहार ) ,कंचनजंगा राष्ट्रीय पार्क ( सिक्किम ), ली काबुशियार के स्थापत्य कार्य , (चंडीगढ़)

2017 :-

अहमदाबाद का ऐतिहासिक शहर ( गुजरात)

2018 :-

मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको एंसेंबल ( महाराष्ट्र)

2019 :-

जयपुर की चारदीवारी ( राजस्थान )

नोट -

जुलाई 2019 तक विश्व धरोहर सूची में 167 देशों के 1121 स्थानों को शामिल किया गया है विभिन्न देशों में स्थित इन स्थलों में सर्वाधिक 55-55 स्थल चीन व इटली के है ,जबकि स्पेन के 48 ,जर्मनी के 46, फ्रांस के 45 ,और भारत के 38 , मेक्सिको के 35 स्थल इस सूची में शामिल है।

2013 में मणिपुर का पारंपरिक गायन , ढोल और नृत्य संकीर्तन के साथ बांग्लादेश की 'जामदानी बुनाई : और जापान में भोजन पकाने का पारंपरिक तरीका " वासोकु "सहित 14 नई प्रविष्टियों को यूनेस्को की इनटेंजिबल हेरीटेज सूची में शामिल किया गया है।











Taxation in India भारतीय कर व्यवस्था

 भारतीय कर व्यवस्था - 

आधुनिक अर्थशास्त्र में कर आय को वितरित करने का तरीका माना जाता है। यह सरकार द्वारा नागरिकों से लिया गया अनिवार्य अंशदान है, जिसे वह नागरिक को एवं देश के कल्याण के लिए खर्च करती है। भारत में कर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, तथा स्थानीय सरकार द्वारा वसूल किए जाते हैं। अर्थव्यवस्था में कर लगाने की तीन विधियां प्रचलित है-


1. प्रगतिशील कर प्रणाली ( progressive tax system) -     यदि आय की वृद्धि के साथ कर की दर में वृद्धि हो तो इसेे प्रगतिशील कर प्रणालीीी कहते हैं।

2. प्रतिगामी कर प्रणाली ( regressive tax system) - यदि आय की वृद्धि के साथ कर की दर घटती जाए , तो इसेे प्रतिगामी कर प्रणाली कहते हैं।


3. आनुपातिक कर प्रणाली( proportional tax system )- यदि कर की दर आय में परिवर्तन के साथ भी परिवर्तित ना हो तो इसे आनुपातिक कर प्रणाली कहते हैं।


कर के प्रकार :-

प्रत्यक्ष कर

प्रत्यक्ष कर वे होते हैं जिनको वही व्यक्ति देता है जिस पर यह लगाए जाते हैं, दूसरे शब्दों में प्रत्यक्ष कर का दबाव तथा भार अंतिम रूप से वही व्यक्ति पर पड़ता है, जिस पर वह सरकार द्वारा लगाया जाता है। करदाता को इस कर के भार को किसी अन्य व्यक्ति पर टाल नहीं सकता है कुछ महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष कर निम्नलिखित है।

Income tax आयकर :-

भारत में आयकर सर्वप्रथम 24 जुलाई 1860 में लगाया गया । 24 जुलाई 2010 को 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 24 जुलाई को आयकर दिवस मनाया जाता है। भारत में आयकर का नियमन इनकम टैक्स एक्ट 1961 द्वारा होता है सरकार जल्द ही इसके स्थान पर प्रत्यक्ष कर संहिता लागू करने का प्रयास कर रही है।

निगम कर Corporate tax

कंपनी की आय पर लगने वाले कर को निगम कर कहते हैं।

प्रत्यक्ष कर संहिता ( डायरेक्ट टैक्स कोड ) 

केलकर समिति की अनुशंसा पर सरकार ने प्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में व्यापक सुधार का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव में प्रत्यक्ष कर नियमों को परिवर्तित कर एक एकीकृत प्रत्यक्ष कर संहिता लाने का प्रावधान किया गया है नए प्रस्तावित कानून में प्रत्यक्ष कर ढाचे को सरल बनाने के प्रयास किया गया है ताकि जटिल आयकर कानून एवं निगम कर आदि प्रत्यक्ष करों को प्रतिस्थापित किया जा सके इसका उद्देश्य कम से कम दर पर आय कर वसूला और अधिक से अधिक लोगों आयकर के दायरे में लाना है।

अप्रत्यक्ष कर indirect tax :-

अप्रत्यक्ष कर वे कर है, जिन का दबाव एक व्यक्ति पर तथा उसका भार दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है । दूसरे शब्दों में कर की जिम्मेदारी तो करदाता पर होती है, परंतु वह कर का भार पूर्ण रूप से या अथवा आंशिक रूप से दूसरे व्यक्तियों पर डाल देता है कुछ महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष कर

उत्पाद शुल्क excise duty :-

सरकार उत्पाद शुल्क उन वस्तुओं पर लगाती है, जो देश के भीतर उत्पादित होते हैं।

बिक्री कर sale tax :-

सरकार किसी वस्तु के विक्रय पर जो कर वसूलती है, उसे बिक्री कर कहते हैं भारत के ज्यादातर राज्यों में अब बिक्री कर की जगह वेट ने ले ली है।

सीमा शुल्क :-

सीमा शुल्क ऐसे शुल्क या कर है जो आयातित वस्तू तथा देश से निर्यातित वस्तु पर लगाया जाता है इस समय निर्यात शुल्क नहीं लगाया जाता है, इसीलिए आयात शुल्क ही सीमा शुल्क का पर्याय है।

सेवा कर service tax :-

चलैया समिति की संस्तुति पर सेवाकर को 1994 से 95 केंद्रीय बजट में शुरू किया गया यह जम्मू कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों में लागू है सेवा कर और अधिक विस्तृत करने के लिए सरकार द्वारा 1 जुलाई 2012 को निषेधात्मक सूची नेगेटिव लिस्ट जारी की गई इसका अर्थ यह है कि अब ऐसी सेवाओं की सूची जारी की जाएगी जिन पर सेवा कर नहीं लगता है नकारात्मक सूची को छोड़कर बाकी सभी सेवाएं कर के दायरे में आ जाएगी सेवा कर मूलतः संघ सूची में आता है भारतीय संविधान के 88 वें संविधान संशोधन के अनुसार सेवाओं पर भारत सरकार द्वारा लगाए जाएंगे तथा संसद द्वारा पारित कानून के अंतर्गत भारत सरकार तथा राज्य के मध्य बांटे जाएंगे

मूल्य वर्धित कर प्रणाली value added tax system (VAT) :-

वेट मूल्यवर्धन पर लगने वाला कर है इसमें उत्पादन व बिक्री के प्रत्येक चरण में होने वाले मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाता है इसमें कर की गणना का आधार मूल्य वर्धन होता है ना कि आउटपुट उदाहरणार्थ एक धागा बनाने वाली इकाई ₹100 में कपास खरीदा और उसे धागे के रूप में तैयार करने की प्रक्रिया में कुछ सेवा व श्रम लागत लगाकर लाभ के साथ ₹200 में कपड़ा कंपनी को भेजता है स्पष्ट है की धागा बनाने वाली इकाई ने कपास में ₹100 का मूल्य वर्धन किया अतः इस मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाएगा इस प्रकार प्रत्येक स्तर पर वस्तु में होने वाले मूल्यवर्धन पर कर लगाया जाएगा वेट ने केंद्र के स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क को प्रतिस्थापित किया और राज्य के स्तर पर बिक्री के प्रत्येक स्तर पर पंजीकृत व्यापारी को वस्तु का मूल्य वर्धन पर वेट देना पड़ता है

                                                         वेट का प्रथम प्रतिपादन 1918 में एफ वान सीमेंस ने किया परंतु इसे 1954 में सर्वप्रथम सफलतापूर्वक फ्रांस में लागू किया गया, धीरे-धीरे यह अन्य यूरोपियन तथा एशियाई देशों में लागू हुआ। भारत में वेट 1 अप्रैल 2005 से लागू किया गया वर्तमान में वेट सभी राज्य में लागू है ,वेट लागू करने वाला प्रथम राज्य हरियाणा तथा अंतिम राज्य उत्तर प्रदेश रहा लक्ष्यदीप तथा अंडमान निकोबार दीप समूह से संघ शासित प्रदेश है जहां बिक्री कर नहीं है इसीलिए यहां पर लागू नहीं है।






सोमवार, 23 नवंबर 2020

Tax system

टैक्स सिस्टम

कर एक प्रकार का अनिवार्य भुगतान है, जो उस व्यक्ति को अनिवार्य रूप से सरकार को देना पड़ता है जो कर आधार से संबंधित होता है तथा जिसके बदले करदाता को आवश्यक रूप से कोई लाभ नहीं प्राप्त होता कर आधार से आशय उस से है जिसके आधार बनाकर कर लगाया जाता है जैसे आयकर का कर आधार आय हैं।

कर दो प्रकार के होते हैं प्रत्यक्ष तथा परोक्ष कर।
१. प्रत्यक्ष कर :- हम उन करो को प्रत्यक्ष कर कहते हैं जिनके मौद्रिक तथा वास्तविक बोझ अर्थात कर से उत्पन्न ( impact) तथा करापात (इंसीडेंस) उसी व्यक्ति पर पड़ते हैं जिसके ऊपर सरकार कर लगाती हैं।

केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष कर :- व्यक्तिगत ,आयकर निगम कर ,उपहार कर,आयकर संपत्ति कर, पूंजी लाभ कर, लाभांश कर, ब्याज कर ,प्रतिभूति व्यवहार कर आदि।

राज्य सरकार के प्रत्यक्ष कर:-  होटल प्राप्ति उपर कर, भू राजस्व कर, कृषि आय पर कर ,व्यवसाय कर, गैर अचल संपत्तियों पर कर रोजगार ऊपर कर इत्यादि।



२. परोक्ष कर :- जिन करो कि वास्तविक बोझ को विवर्ती किया जा सकता है उन्हें अप्रत्यक्ष कर कहते हैं।

केंद्र सरकार के अप्रत्यक्ष कर :-  सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क ,केंद्रीय बिक्री कर और सेवा कर 1994


राज्य सरकार के अप्रत्यक्ष कर :- बिक्री कर, व्यापार कर, पंजीयन शुल्क, राज्य उत्पाद शुल्क ,वाहनों पर कर ,विज्ञापन पर कर, प्रवेश कर ,शिक्षा उपकर ,सट्टेबाजी पर कर, पेट्रोल पर बिक्री कर।

Note:- मूल्य वर्धित (VAT Value added tax)कर सबसे पहले हरियाणा में और सबसे अंत में उत्तर प्रदेश में लागू किया गया था।
- केंद्र को सर्वाधिक निवल राजस्व की प्राप्ति सीमा शुल्क को से होती है सीमा शुल्क से प्राप्त राजस्व का बंटवारा राज्यों को नहीं करना होता है।

- कर ढांचे में सुधार के लिए सुझाव देने हेतु चलैया समिति
 का गठन अगस्त 1991में किया गया था।

- छोटे व्यापारियों के लिए एकमुश्त आयकर योजना की सिफारिश चलैया समिति ने की थी।

- चेलैया समिति ने गैर कृषकों की ₹25000 से अधिक की वार्षिक कृषि आय पर आयकर लगाने की संस्तुति की थी।

- केंद्रीय बिक्री कर एक ऐसा कर है जिसे केंद्र सरकार लगाती है पर जिसकी वसूली राज्य सरकार करती है ,तथा इसकी राजस्व प्राप्ति राज्य द्वारा ही ले ली जाती है इसकी शुरुआत 1% की अत्यंत ही अल्प दर से 1982 में शुरू किया गया था।

- वस्तु एवं सेवा कर (Good and s

Service tax) :-    1 जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर की व्यवस्था लागू की गई है अब तक केंद्र सरकार और राज्य सरकार या दोनों द्वारा लगाए जाने वाले सभी कर की जगह सिर्फ एक जीएसटी लगेगा जो सभी वस्तुओं एवं सेवा कर के ऊपर लगेगा एक वस्तु के ऊपर जो भी जीएसटी कर की दर होगी वह पूरे देश में एक ही लगेगी।

- 8 सितंबर 2016 को अनुसूचित 101 वे संविधान संशोधन के द्वारा जीएसटी को लागू किया गया।

-जीएसटी के तहत वस्तुओं और सेवाओं पर इन दरों पर लगेगा 0.25% 5% 12% 18% एवं 28% की विशेष दर से और सोने पर 3% कर लगेगा।

- संविधान में जीएसटी की परिभाषा के अनुसार मानव उपभोग के लिए अल्कोहल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, दूसरी और पांच पेट्रोलियम उत्पाद नामक कच्चा तेल मोटर स्पिरिट, पेट्रोल हाई स्पीड डीजल ,प्राकृतिक गैस, और एविएशन टाइप बटन को अस्थाई रूप से जीएसटी से बाहर रखा गया है ,और जीएसटी परिषद इन 5 उत्पादों पर जीएसटी लागू की तिथि का निर्धारण कर सकती है।

-जीएसटी लागू करने के लिए संसद ने इन विधेयक को पारित किया :

 पहला - केंद्रीय जीएसटी विधेयक 2017 
दूसरा   - एकीकृत जीएसटी विधेयक 2017 
तीसरा  - जीएसटी राज्य की क्षतिपूर्ति विधेयक 2017 
चौथा  -  केंद्र शासित प्रदेश जीएसटी विधेयक 2017

- जीएसटी एक गंतव्य आधारित कर है । इसमें राज्यों के बीच विशेष रूप से विनिर्माण करने वाले राज्य में आशंका थी कि जीएसटी को लागू करने से उन्हें राजस्व की हानि होगी इसीलिए संविधान के 101 वें संविधान संशोधन के द्वारा वस्तु एवं सेवा कर को लागू करने के कारण होने वाले राजस्व के नुकसान के लिए 5 वर्षों की अवधि के लिए राज्यों को क्षतिपूर्ति करने की व्यवस्था की गई है। 
 
- जीएसटी से मुक्त वस्तुएं :- प्राकृतिक मधु ,दूध ,फूल झाड़ू ,खुला खाद्य पदार्थ ,लस्सी ,खुला पनीर ,दही, प्रसाद, जग्गेरी ,नमक ,गुड ,खाद्य पदार्थ ,स्वास्थ्य सेवाएं ,काजल, चित्रकला की किताबें ,शिक्षा सेवाएं ,और अंडा।

Note :-  विश्व में सर्वप्रथम फ्रांस ने 1954 में अपने यहां जीएसटी लागू किया था।

-छोटे करदाताओं के लिए जीएसटी के लाभ :-  
१. सकल वार्षिक टर्न ओवर 20 लाख तक होने पर कोई कर नहीं।

२. पूर्वोत्तर सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए छूट की सीमा 1000000

३. छूट सीमा से नीचे एक कारोबारी इनपुट टैक्स क्रेडिट के लाभ के साथ स्वैच्छिक कर भुगतान कर सकते हैं।

४. यदि कर छूट की सीमा में है तो पंजीयन की कोई जरूरत नहीं।

जीएसटी परिषद संरचना :- 

1. अध्यक्ष  - केंद्रीय वित्त मंत्री
2. उपाध्यक्ष - राज्य सरकारों के मंत्रियों के बीच निर्वाचन
3. सदस्य।  - केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री तथा सभी राज्यों के वित्त कराधान मंत्री
4. गणपूर्ति कोरम - कुल सदस्यों का 50%
5. निर्णय - 75% बहुमत से

(परिषद जीएसटी संबंधित सभी मुद्दों यथा विधि नियम दर आदि पर निर्णय करेगी)

- संवैधानिक संशोधन से यह व्यवस्था सुनिश्चित की गई है कि जीएसटी परिषद का प्रत्येक निर्णय बैठक में उपस्थित सदस्य और वेट वोटिंग के कम से कम तीन चौथाई वोटों से किया जाएगा ऐसी बैठक में केंद्रीय सरकार के वोटों का मान कुल डाले गए वोटों का एक तिहाई होगा और सभी राज्य सरकारों के वोटों का एक तिहाई साथ मिलाकर उस बैठक में डाले गए कुल वोटों का दो तिहाई मान होगा जीएसटी परिषद के कुल सदस्यों में आधे सदस्यों द्वारा बैठक की गणपूर्ति की जाएगी।

जीएसटी परिषद :- निर्णय

- जीएसटी से छूट के लिए सीमा 20 लाख रुपए होगी + (विशेष राज्य में 1000000)

- समय की छूट सीमा ₹5000000 है जिसमें 
व्यापारी का 1% 
निर्माता का 2% और 
restaurant का 5%

- सरकार मौजूदा क्षेत्र अधारित झूठी योजनाओं को प्रतिपूर्ति योजना में बदल सकती है।

-  चार कर दरे   5 ,12 ,18, 28%

-  कुछ वस्तुएं और सेवाएं जीएसटी से मुक्त।

- कीमती धातुओं के लिए अलग दरें।

- खास विलासिता वस्तुओं पर 28% की सर्वोच्च स्तर के ऊपर से भी लागू।

- सभी प्रशासनिक नियंत्रण के लिए एकल मंच सुनिश्चित करना।

- 1.5 करोड़ रुपए से कम टर्नओवर वाले 90% करदाता के कर प्रशासन के अधीन रहेंगे।

जीएसटी समाहित अप्रत्यक्ष कर:-

क. केंद्र सरकार   

              
1. केंद्रीय उत्पाद शुल्क
2. उत्पाद शुल्क (औषधीय और प्रसाधन सामग्री)
3. अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (विशेष महत्व की वस्तुओं)
4. अतिरिक्त उत्पाद शुल्क कपड़ा एवं कपड़ा उत्पाद
5. सेवा कर
6. केंद्रीय अधिकार और अगर जब तक कि वे वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित हो।

ख. राज्य सरकार

राज्य वेट 
लग्जरी कार 
प्रवेश कर 
मनोरंजन कर 
विज्ञापन पर कर 
विक्रय कर 
लॉटरी सट्टे और जुए से जुड़े कर 
राज्य स्तरीय आभार और 
जब तक की व्यवस्था और सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित हो।

- 1.5 करोड़ रुपए से कम टर्नओवर वाले 10% करदाता ही केंद्रीय कर प्रशासन के अधीन रहेंगे।

- 1.5 करोड़ रुपए से अधिक टर्नओवर वाले करदाता का विभाजन केंद्रीय तथा राज्य के कर प्रशासन के बीच समान रूप से होगा।

- जीएसटी में 17 अप्रत्यक्ष कर 8 केंद्रीय 9 राज्य स्तरीय और 23 (  केंद्रीय और राज्य उपकर समाहित है )।

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